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सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा...

सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा (Satya Ke Prayog Athava Atmakatha)
लेखक: महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi)
प्रकाशन वर्ष: 1927-1929 (किस्तों में प्रकाशित)

पुस्तक का परिचय:

महात्मा गांधी की "सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा" उनकी आत्मजीवन कथा है, जिसमें उन्होंने अपने जीवन के व्यक्तिगत और सार्वजनिक अनुभवों को साझा किया है। यह पुस्तक न केवल गांधीजी के जीवन का दस्तावेज़ है, बल्कि उनके विचारों, मूल्यों और सत्य के प्रति उनकी अटूट निष्ठा का विवरण भी है।

यह पुस्तक 20वीं सदी के भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की पृष्ठभूमि को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है और पाठकों को सत्य, अहिंसा, और स्वावलंबन के सिद्धांतों पर गहराई से सोचने के लिए प्रेरित करती है।


पुस्तक की संरचना:

पुस्तक को पांच भागों में विभाजित किया गया है, और प्रत्येक भाग में महात्मा गांधी के जीवन के अलग-अलग चरणों का वर्णन किया गया है:

भाग 1:

  • गांधीजी के बचपन और किशोरावस्था की घटनाएँ।
  • विवाह, परिवार और स्कूली शिक्षा से जुड़े अनुभव।
  • सत्य और नैतिकता के प्रति प्रारंभिक झुकाव।

भाग 2:

  • इंग्लैंड में शिक्षा ग्रहण करने का अनुभव।
  • वकील बनने की यात्रा और वहां के सांस्कृतिक अनुभव।
  • स्वच्छता, आहार, और शाकाहार के प्रति रुचि।

भाग 3:

  • दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी का जीवन।
  • नस्लीय भेदभाव का सामना और उसके खिलाफ लड़ाई।
  • सत्याग्रह की अवधारणा का जन्म।

भाग 4:

  • भारत वापसी और स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी।
  • भारतीय समाज के प्रति उनकी सेवा और संघर्ष।
  • स्वराज, स्वदेशी, और अस्पृश्यता निवारण जैसे विषयों पर उनके प्रयास।

भाग 5:

  • व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में सत्य और अहिंसा के प्रयोग।
  • आत्मनिरीक्षण और जीवन के प्रति उनके विचार।

मुख्य विचार और विषय:

  1. सत्य और अहिंसा का महत्व:
    गांधीजी ने अपने जीवन में सत्य और अहिंसा को सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत माना। उन्होंने हर परिस्थिति में सत्य का पालन करने का प्रयास किया।

  2. आत्मनिरीक्षण और सुधार:
    गांधीजी ने अपने अनुभवों और गलतियों से सीखने की प्रक्रिया को ईमानदारी से प्रस्तुत किया। यह पुस्तक उनके व्यक्तिगत विकास की कहानी भी है।

  3. स्वदेशी और स्वावलंबन:
    उन्होंने भारतीय समाज को आत्मनिर्भर बनाने और विदेशी उत्पादों पर निर्भरता खत्म करने का संदेश दिया।

  4. सामाजिक सुधार:
    अस्पृश्यता, जातिवाद, और महिलाओं के अधिकारों के लिए किए गए प्रयासों का उल्लेख।

  5. आहार और स्वच्छता:
    शाकाहार, उपवास, और स्वच्छता के प्रति गांधीजी के विचारों का वर्णन।


पुस्तक की विशेषताएँ:

  • ईमानदारी और सरलता:
    गांधीजी ने अपनी सफलताओं और असफलताओं को पूरी ईमानदारी से साझा किया है। उन्होंने अपने जीवन को पाठकों के सामने बिना किसी दिखावे के प्रस्तुत किया है।

  • प्रेरणा स्रोत:
    यह पुस्तक सिर्फ आत्मकथा नहीं है, बल्कि सत्य, अहिंसा और नैतिकता के आदर्शों पर आधारित जीवन जीने की प्रेरणा है।

  • ऐतिहासिक दस्तावेज:
    यह पुस्तक भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और उस समय के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य को समझने में मदद करती है।


प्रमुख उद्धरण:

  1. "मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।"
  2. "सत्य कभी हिंसा का सहारा नहीं लेता।"
  3. "जिस परिवर्तन को आप दुनिया में देखना चाहते हैं, वह स्वयं बनें।"

पुस्तक क्यों पढ़ें?

  1. आत्मनिरीक्षण:
    गांधीजी के अनुभव आपको अपने जीवन और मूल्यों पर विचार करने के लिए प्रेरित करेंगे।

  2. प्रेरणा:
    सत्य और अहिंसा के प्रयोग के माध्यम से कठिनाइयों का सामना करने की प्रेरणा मिलती है।

  3. समझ:
    यह पुस्तक भारत की आजादी के संघर्ष और गांधीजी की विचारधारा को समझने में मदद करती है।

  4. सार्वकालिक महत्व:
    सत्य और नैतिकता के ये सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं और व्यक्तिगत, सामाजिक, और राजनीतिक जीवन में मार्गदर्शन कर सकते हैं।


"सत्य के प्रयोग" एक ऐसी किताब है जो न केवल गांधीजी के जीवन को समझने का अवसर देती है, बल्कि हमारे जीवन में सच्चाई, साहस, और करुणा को अपनाने की प्रेरणा भी देती है। यह पुस्तक हर व्यक्ति के लिए पठनीय और संग्रहणीय है।

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